मैं नूं दिलों गँवाइए || आचार्य प्रशांत, संत बुल्लेशाह पर (2017)

2024-04-18 1

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वीडियो जानकारी: अद्वैत बोध शिविर, 11.1.17, ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश, भारत

प्रसंग:
~ बुल्ले शाह गल तायुं मुकदी का क्या अर्थ है?
~ मुक्ति क्या मक्के जा कर और गंगा नहा कर मिलती है?
~ मुक्ति का एकमात्र साधन क्या है?
~ हमारी सारी समस्याओं का मूल कारण क्या है?
~ हमारा अहंकार और पोषण कैसे पाता है?


मक्के गयों गल मुकदी नाहीं
सौ-सौ हज कर आइए
गंगा गयों गल मुकदी नाहीं
सौ-सौ गोते खाईए
बुल्ले शाह गल तायुं मुकदी
बुल्ले शाह गल तायुं मुकदी
मैंनु दिलों गंवाइए
चल बुल्लेया चल ओथे चलिए
जित्थे सारे अन्ने

ना कोई सादी जात पछाने
ना कोई सादी जात पछाने
ना कोई सानु मन्ने
चल चल बुल्लेया
चल ओथे चलिए
जित्थे सारे अन्ने

पढ़-पढ़ ईल्म ते फ़ाज़िल होयों
मन्न अपाने नु पढ़ैया ई नाहीं
भज भज वदनाय मंदिर मसीति
मन्न अपने विच वदया ई नहीं
बुल्ल्ह शाह आसमानी फड़नाय
बुल्ल्ह शाह आसमानी फड़नाय
घर बेठे नु फाड़ेया ई नाहीं
चल बुल्लेया चल ओथे
चलिए जित्थे सारे अन्ने

ना मैं मोमिन विच मसीता
ना मैं विच कुफ़र दियां रीतां
ना मैं पाकां विच पलीतान
ना मैं मूसा ना फिरों
ना मैं मूसा ना फिरों
कि जाना मैं कौन बुल्लेया
कि जाना मैं कौन
कि जाना मैं कौन बुल्लेया
कि जाना मैं कौन


संगीत: मिलिंद दाते
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